ख़ुशी और आनंद, यह दोनों ऐसी भावनाये है जो सुनने में भले ही एक जैसी लगे, पर वास्तविकता में एक दुसरे से बोहोत अलग है। आईये, इन दोनों भावनाओ को मिलकर समझते है।
मुझे याद है, जब मैं छोटी थी तो हम हर गर्मी की छुट्टियों में मेरे पापा के गांव जाया करते थे। भाई-बहनों की नोक झोंक, खूब सारा लज़ीज़ खाना और रात भर कभी न ख़त्म होने वाली बातें, कुछ ऐसा होता था वहां का माहौल। जैसे ही सुबह होती, गांव के सभी बच्चे मिलकर टायरों के साथ जो खेलना शुरू करते, रुकने का नाम ही नहीं लेते थे। चाहे धूप आये या बाढ़, वह हर क्षण का पूरा आनंद उठाते थे। ना ही उनके पास कोई महेंगे वीडियो गेम्स थे, और न ही ज़िन्दगी के वह आराम जो शायद आज आपके और मेरे पास है। वह सिर्फ खुश नहीं, वह आनंदित थे।
कई बार हम ख़ुशी और आनंद के बीच का फर्क समझने में नाकामियाब हो जाते हैं। ख़ुशी एक ऐसी भावना है, जो हमारे काबू में नहीं होती, वह हमारी परिस्थितियों पर निर्धारित होती है। लेकिन आनंद हमारे हालातों से परे है। यह किसी के कहने पर महसूस नहीं किया जा सकता, बल्कि यह खुद लिया हुआ एक निश्चित फैसला होता है।
पर एक राज़ की बात है, हम इस आनंद को खुद के बल पर कभी प्राप्त नहीं कर सकते। सिर्फ यीशु ही हमें यह आनंद दे सकता है। चाहे हालत कितने भी बिगड़ क्यों न जाये, या हमें कितनी भी चुनौतियों का सामना क्यों न करना पड़े, यीशु का यह आनंद हमेशा हमारी ढाल बनकर, हमें संभाले रहता है।
तो क्या आप तैयार हैं, इस आनंद को पाने के लिए? हमसे ज़रूर बात करें।
क्या आप बिना कुछ काम किए भी हर समय थका हुआ महसूस करते हो? कई…
आपने अपनी मनोकामना को पूरी करने के लिए क्या क्या किया है? हम अपनी मनोकामना…
प्यार के बिना ज़िंदगी का कोई मतलब नहीं है पर यह भी सच है कि…
“क़िस्मत का लिखा कोई नहीं मिटा सकता।” “ये तो नसीबों की बात है।” क्या हमारी…
ये बात सच है कि "कल किसने देखा है" पर भविष्य की तैयारी और योजना…
ट्रैन पटरी से उतरने की दुर्घटना में, घायल हुए 1000 से भी ज़्यादा लोग। इस…