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बाइबिल – क्या है इसकी सच्चाई? जानिए बाइबिल के कुछ ऐतिहासिक रहस्य।

बाइबिल सत्य है

जब से इन्सान इस धरती पर आया है, उसकी एक खोज हमेशा चली आ रही है, और वह है, ‘सत्य की खोज’। एक सिक्के के दो पहलू की तरह, एक पहलू में प्रकृति सच्चाई की एक झलक देता है और दूसरे पहलू में बाइबिल, जो की परमेश्वर का वचन है, जीवन की सच्चाई को उजागर करता है। बाइबिल में यीशु ने यूहन्ना 17:17 में कहा, “हे परमेश्वर, आपका वचन सत्य है”।

पर हमें यह बात अपने आप से पूछना चाहिए- ‘सत्य’ क्या है? सत्य का सम्बन्ध यथार्थ और युक्ति से है। सत्य बदलता नहीं, सिर्फ़ उसे देखने का नज़रिया बदलता है।

यूहन्ना 17:17 में ‘सत्य’ के लिए ग्रीक भाषा में ‘अलेथिया’ शब्द का इस्तेमाल हुआ है, जिसका मतलब है- यथार्थ, या किसी पदार्थ का प्रकाशित हुआ तत्व। अंग्रेज़ी भाषा में ‘सत्य’ के लिए ‘असली’ शब्द का भी इस्तेमाल हुआ है।  परमेश्वर का वचन असली है। उसमें कोई मिलावट नहीं।

रवीन्द्रनाथ टैगोर कहते हैं, “तथ्य कई हैं, पर सत्य केवल एक ही है”।

हर धर्म और शास्त्र, जीवन और सृष्टि के बारे में कई तथ्य बताते हैं, लेकिन बाइबिल जीवन के स्रोत के बारे में और सृष्टिकर्ता परमेश्वर के बारे में बताती है। बाकि धर्मशास्त्रों में आधा-अधूरा सत्य या तथ्य है पर बाइबिल पूरे सत्य को प्रकाशित करती है। बाइबिल में पहला शब्द परमेश्वर के बारे में बताता है जो कि सत्य का स्रोत और स्वभाव है।

बाइबिल की शुरुआत सृष्टि से नहीं होती बल्कि ऐसे होती है, “आरंभ में परमेश्वर…”- उतपत्ति 1:1, आरंभ परमेश्वर है, सृष्टि नहीं।

एक और ज़रुरी सवाल जो हमें पूछना है, वह ये है कि, “हमें सत्य को जानने की ज़रुरत क्यों है ?”। यीशु ने यूहन्ना 8:32 में कहा, “तुम सत्य को जानोगे और सत्य तुम्हें आज़ाद करेगा”। बाइबिल में सदियों से लोगों के जीवन को बदलने की ताकत है। अपनी एक किताब, ‘सत्य से मेरा सामना’ में, पंडित धर्म प्रकाश शर्मा, परमेश्वर के वचन की ताकत के द्वारा जीवन में परिवर्तन के अनुभव को बयान करते हैं। परमेश्वर का सत्य हमें आज़ाद करता है- आज़ादी परमेश्वर और उसके उद्देश्य को न जानने से, आज़ादी बुराई की ताकत से, आज़ादी शैतान के छल से, आज़ादी हमारी पाप करने की प्रवृत्ति से।

एक कहानी या पौराणिक कथा से परे

बहुत सारे ऐसे कारण हैं जिससे हम समझ पाते हैं कि बाएक मनगढ़ंत कहानी या पौराणिक कथा से परे है।

1. ऐतिहासिक घटनाँए: सबसे पहली बात तो यह है कि बाइबिल में लिखी गई कई ऐतिहासिक घटनाँए, इतिहास में बाकि जगहों में भी लिखी गई हैं। इससे साबित होता है कि बाइबिल सत्य घटनाओं पर आधारित है। जबकि पौराणिक कहानियाँ क्या हैं? यह ग्रीक भाषा के शब्द ‘मिथॉलजी'(mythology) से आया है जिसका मतलब है ‘पौराणिक सुनी-सुनाई कहानियाँ’, जो कि आया है ‘मिथोस’ शब्द से जिससे बना है ‘मिथ’, यानि ‘ऐसी कोई चीज़ जिसके स्रोत के बारे में कुछ पता न हो’ + ‘लॉजी’, यानि ‘पढ़ाई’ या ‘अध्ययन’। तो ‘मिथोलोजी’ का मतलब है ‘ऐसी चीज़ के बारे में पढ़ाई जिसके स्रोत का कुछ पता न हो’।

2. पुरातत्व (archeology) खोज: दूसरी बात यह है कि बाइबिल में लिखे गए चीज़ों के स्रोत हमें पुरातत्व (archeology) खोज से मिलते हैं। कुछ स्रोत 25,000 पुरातत्व खोजों की पुष्टि करते हैं जो बाइबिल में हैं! बाइबिल में कही गई बातें, मध्य-पूर्व (middle-east) के कई देशों जैसे प्राचीन येरुशलम, मिस्र के राजा फ़िरौन, पर्शिया, रोम और ग्रीस में सटीक पाई गई हैं।

3. सैकड़ों भविष्यवाणियाँ: तीसरा यह कि बाइबिल की सैकड़ों भविष्यवाणियाँ इतिहास में सच साबित हुई। बाइबिल की भविष्यवाणियाँ इतनी सामान्य, सटीक और सच हैं कि पहली शताब्दी के ‘मसीह के अनुयायियों’ ने, बाइबिल के पुराना नियम से यह साबित किया कि यीशु ही मसीहा है, जब वह यहूदियों से बात कर रहे रहे थे।

8 दिलचस्प बातें जो बाइबिल को अनोखा बनाती है

1. 40 अलग-अलग तरह के लोग, जिनमें से कुछ राजा (सुलेमान), कुछ मछुआरे (पतरस), डॉक्टर (लूका), आयकर वसूलने वाले (मती), सिपाही (यहोशु), आदि ने बाइबिल को लिखा। हर तरह के व्यक्ति : बुद्धिमान और बेवकूफ़, वफ़ादार और धोख़ेबाज़, निर्दोष और दोषी, जवान और बूढ़े, आदि ने बाइबिल को लिखा।

2. हर तरह के लिखने की शैली बाइबिल में मिलती है, जैसे, कविता, इतिहास, नियम, ऐतिहासिक जीवनी, गीत, उपदेश और चिट्ठियाँ।

3. बाइबिल को तीन भाषाओं में लिखा गया :- हिब्रू, अरामिक, ग्रीक।

4. इसे लगभग 1500 सालों में तीन अलग-अलग महादेशों- एशिया, यूरोप और अफ़्रीका में लिखा गया।

5. कोई और धर्मशास्त्र बाइबिल के जैसी शिक्षा नहीं देता, जैसे कि – अनंत जीवन सिर्फ़ प्रभु यीशु मसीह से मिलता है।

6. बाइबिल ने पूरे पश्चिमी समाज और उसकी कला, संगीत, साहित्य, साइंस, इतिहास और सरकारों पर अपना गहरा प्रभाव डाला है।

7. यह आज सबसे ज़्यादा छपने, बिकने, पढ़ने और लोगों में बाँटी जाने वाली किताब है, और वह भी विश्व की लगभग हर भाषा में।

8. इसे कई बार मिटाने की या नष्ट करने की कोशिश की गई, जैसे- तीसरी या चौथी शताब्दी में रोमन शाषक डियोक्लेटियन के द्वारा या 18 वीं सदी में जब लोगों ने इसमें ग़लतियाँ निकालने की कोशिश की या फ़िर 20 वीं या 21 वीं सदी के जगत में…बाइबिल आज भी बिना किसी बदलाव के लोगों के बीच मौजूद है और दुनियाभर के लोगों के ज़िंदगी जीने का कारण बनी हुई है।

2 तिमुथियस 3:16, 17 के अनुसार बाइबिल अपनी गवाही देती है कि मौख़िक तौर पर नहीं बल्कि लोगों ने पवित्र आत्मा से प्रेरित होकर इसे लिखा।

एक ऐसा पैग़ाम जो दिल तक पहुँचता हो

बाइबिल का पैग़ाम, हर एक के दिल में उठते हुए सवालों का जवाब है। साइंस के महान विचारक “ब्लेज़ पास्कल” का कहना है, “हर एक के दिल में परमेश्वर के आकार की  बनायी ख़ाली जगह है जिसे सिर्फ़ परमेश्वर ही भर सकता है, दूजा और कोई नहीं। इंसान परमेश्वर तक नहीं पहुँच सकता, जब तक परमेश्वर उस तक न आए। बाइबिल उस रहस्य के बारे में बताती है जो इंसान की समझ से परे है। बाइबिल का हर एक पन्ना और हर एक शब्द उस रहस्य के बारे में बताता है जिसमें परमेश्वर इंसान को चाहता है, अदन के बगीचे से, गेथसेमेनी के बगीचे तक, परमेश्वर इंसान को ख़ोज रहा है। बाइबिल की पहली किताब ‘उत्पत्ति’ से लेकर आख़िरी किताब ‘प्रकाशितवाक्य’ तक परमेश्वर इंसान को ख़ोज रहा है।

उत्पत्ति 3:9 में परमेश्वर इंसान से पूछता है, “तुम कहाँ हो ?”

प्रकाशितवाक्य 3:20 में परमेश्वर इंसान से कहता है, “मैं यहाँ हूँ! तुम्हारे दरवाज़े पर खड़ा खटखटाता हूँ।

क्या आप बाइबिल और परमेश्वर के बारे में और जानना चाहेंगे? आप हमसे सम्पर्क कर सकते हैं।आओ हमारे साथ इस नयीमंज़िल पे!


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Nirvi

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