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क्या कर्म करने से मेरी क़िस्मत बदल सकती है?

क्या कर्म करने से मेरी क़िस्मत बदल सकती है?

भगवान

क्या कर्म करने से मेरी क़िस्मत बदल सकती है?

“क़िस्मत का लिखा कोई नहीं मिटा सकता।” “ये तो नसीबों की बात है।” क्या हमारी ज़िंदगी सच में क़िस्मत का खेल है या हम इसे बदल सकते हैं।

ये सब क़िस्मत का खेल है

“जैसी करनी वैसी भरनी”

हम सभी ने ये कहावत सुनी है। अगर इस कहावत में इतनी सच्चाई होती तो गरीब गरीब नहीं रहता और अमीर अमीर नहीं रहता। वास्तव में कर्म तो हम अपनी इच्छा से करते हैं। अगर हम अंजीर का पेड़ लगाए तो हम आम की इच्छा नहीं कर सकते। हम सभी को अच्छे बुरे का ज्ञान होता है। हमें अनुमान होता है कि किस काम का फल अच्छा होगा और किस काम का फल बुरा होगा। 

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क्या करें जब क़िस्मत हाथों से छूटती दिखाई दे? 

इस बात का मतलब ये हुआ कि हमारे निर्णय से हमारी रोज़ मर्रा की ज़िंदगी प्रभावित होती है पर हर इंसान कहीं ना कहीं गलती तो करता है और उन ग़लतियों की वजह से हम कई बार मुसीबत में भी फँस जाते हैं। कई बार परिस्थितियाँ हमारे नियंत्रण के बाहर होती हैं जैसे नौकरी चले जाना, किसी का गुजर जाना, बिज़्नेस में नुक़सान होना आदि। तो क्या हम अब अपनी क़िस्मत पर रोएँ या कर्मों पे। 

बाइबिल भी हमें प्रोत्साहित करती है कि हम अपना एक अच्छा चरित्र बनाएँ और अच्छे काम करें। मगर ईश्वर हमारे अच्छे और बुरे कर्मों को जोड़ घटा नहीं करता। प्रभु येशु दया करने वाला और अनुग्रह से भरा परमेश्वर है। उसकी दया हमारी ग़लतियों से और कर्मों से बहुत ऊपर है। दुनिया सिखाती है कि हम अपने कर्मों के द्वारा स्वर्ग या नरक में डाल दिए जाएँगे पर क्या कोई भी इंसान यह कह सकता है कि उसने कभी कोई पाप या गलती नहीं करी। बल्कि सच यह है की कोई भी पर्फ़ेक्ट नहीं है। रोमीओ ३:२३ “इसलिए की सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से दूर है।” 

क़िस्मत कौन लिखता है? 

फिर किस्मत कैसे बदलें? जो भाग्य में लिखा है वही मिलता है – आपने ये भी कई बार सुना होगा पर मैं आपसे पूछना चाहता हूँ कि क़िस्मत कौन लिखता है? क्या हम लिखते हैं? परमेश्वर लिखता है या फिर लोग लिखते हैं? बाइबल का जवाब यह है: यिर्मयाह २९:११ “मैं यह इसलिए कहता हूँ क्यूँकि मैं उन अपनी योजनाओ को जानता हूँ जो तुम्हारे लिए है। तुम्हारे लिए मेरी अच्छी योजनाएँ हैं, मैं तुम्हें आशा और उज्ज्वल भविष्य देने की योजना बना रहा हूँ।”  

क्योंकि मैं अब ये जानता हूँ कि परमेश्वर ही मेरे जीवन में हर काम का निर्णायक है तो इसका मतलब बहुत आसान है कि हमें परमेश्वर से पूछना होगा जो हमारे भाग्य का निर्माता है। परमेश्वर हमारा सिर्फ़ भाग्य ही नहीं लिखता पर उसके साथ हमें उद्देश्य (purpose) भी देता है। अगर हम प्रभु यीशु के पीछे चलने का निर्णय लेते हैं तो वो हमारे उद्देश्य को भी हम पर ज़ाहिर करता है। अगर आप भी ईश्वर से अपने जीवन के उद्देश्य को पाना चाहते हैं तो नयिमंज़िल से जुड़ें। 

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