इंसान के जन्म से लेकर उसकी मृत्यु तक दो बातें उसके चारो ओर से घिरी रहती है और वो है पाप और धर्म। एक बच्चे के जन्म लेते ही उसके परिवार वाले उसे धर्म को समर्पित करते है और जैसे–जैसे वो बच्चा बढ़ने लगता है तो उसमे जूठ बोलना, जलन, क्रोध, जैसी चीज़े काम करने लगती है।
पाप और धर्म इंसान का पीछा करते रहते है पर सही मायनों में कभी इस बात पर ध्यान नही दिया की पाप और धर्म आखिर है क्या?
पाप सही मायनों में ईश्वर की उपस्थिति से दूर जाना है। पाप ईश्वर की दी हुई आज्ञा का उलाँघन करना भी है, जब ईश्वर हमें कुछ करने को कहते है जैसे हम उस पर विश्वास करें और हम उस पर विश्वास नहीं करते बल्कि शक करते है तो वह पाप है। हर वो बात जो ईश्वर ने हमें आज्ञा दी है यदि हम उन आज्ञाओं को नही मानते तो वह ईश्वर की दृष्टि में पाप गिना जाता है। जैसे के खून न करना, चोरी न करना, लालच, चुगली और भी ऐसी बहुत सी बाते है जो ईश्वर की नज़र में पाप है और जब हम यह सब बाते करते है तो यह पाप गिना जाता है।
धर्म इस दुनिया में अनेक प्रकार के हैं और हर एक धर्म एक दूसरे से भिन्न है। हर एक धर्म एक अलग ही बात कहता है।
मनुष्य धर्म के लिए नहीं बनाया गया बल्कि धर्म मनुष्यों के द्वारा बनाया गया है और न ही धर्म ईश्वर की ओर से है। ईश्वर मनुष्य के साथ एक निजी रिश्ता चाहता है न की धर्म। धर्म कहता है कि पहले रीति रिवाजों को पूरा कर और अपने आप को शुद्ध कर फिर तुझे ईश्वर से इसका फल मिलेगा और वहीं दूसरी ओर ईश्वर कहता है तू मुझ पर पहले विश्वास कर और मेरी ख़ोज कर तो ये सारी वस्तुएं तुझे मिल जाएगी।
धर्म कहता है आज का दिन शुभ नही है वहीं ईश्वर कहता है सब दिन अच्छे है, धर्म बाहरी शुद्धता की बात करता है जैसे कुछ दिनों को बाकी दिनों से बड़ा मानना, सोच कर देखे कि यदि ईश्वर हम इंसानों की तरह यह कहने लगे आज का दिन शुभ नही है इसलिए मैं आज सूरज और चांद को नहीं निकलने दूंगा या वो यह कहे कि आज दिन अच्छा न होने के कारण आज हवा नहीं चलेगी। यह बात सुनने में कितनी मज़ाक़िया लगती है पर यदि वो सच में ऐसा करे तो हमारी भ्रष्ट हुई बुद्धि ठिकाने पर आ जाएगी जिससे हमने धर्म, रीति रिवाजों से सीमित कर दिया है।
किसी दिन मांसाहारी खाना न खाना और किसी दिन कपड़े न धोना या बाल न कटवाना पर सोचने की बात है कि क्या यह सब करने से हमारा भीतरी मन साफ होता है ? बिलकुल नहीं। क्या यह सब करने से हमारे पाप हमसे दूर होते है? नही! ईश्वर तो हमें एक प्यार के रिश्ते में बुलाता है ना कि धर्म की बेड़ियों में, प्रभु यीशु मसीह एक ऐसा ईश्वर है जिसने हमारे पापों के छुटकारे के लिए अपनी जान दी और हमारे दुःख और दर्द अपने ऊपर ले लिया। केवल प्रभु यीशु मसीह ही हमें पाप और धर्म से आज़ाद कर सकते हैं और उनकी ओर से दिया गया मार्ग ही हमें उसके करीब ला सकता है। एक बार कोशिश करे ईश्वर को ईश्वर के नज़रिए से देखने की तब ही आप उससे सही तरह से जान पाएंगे। अगर आप मदद चाहते हैं तो हमसे बात करें।
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