यह सवाल उतना ही ज़रुरी है जितना परमेश्वर से हमारा संबंध। पाप और प्रायश्चित एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अगर हमारे जीवन में पाप है तो हमें उसका प्रायश्चित भी करना होगा। अगर पाप की वजह से हम परमेश्वर से दूर होते हैं तो प्रायश्चित फिर से हमें परमेश्वर के क़रीब लाता है। बिना प्रायश्चित के पाप हमारे जीवन को बर्बाद कर देगा।
आख़िर ‘पाप’ और ‘प्रायश्चित’ है क्या ? आइए एक-एक करके इन दोनों चीज़ों को हम समझें।
पाप वह चीज़ है जो हमें परमेश्वर से अलग या दूर रखती है। यह हमारी सोच, हमारी भावनाएँ या हमारा कोई भी काम हो सकता है। पाप केवल हत्या या चोरी या कोई बुरी सोच ही नहीं बल्कि एक एेसा असाध्य रोग या हमारी प्राकृतिक प्रवृत्ति है जो मनुष्य से हर वो छोटा-बड़ा ग़लत काम करवाती है जो परमेश्वर के ख़िलाफ़ हो। हम पाप करने से गुनाहग़ार नहीं बनते बल्कि हम जन्म से ही पापी हैं इसलिए ग़ुनाह करते हैं। हम सबने पाप किया है और पवित्र परमेश्वर से दूर हो गए हैं।
तो अगर पाप हमारी प्राकृतिक प्रवृत्ति है तो इसके प्रकार क्या-क्या हैं?
पवित्र शास्त्र बाइबल के अनुसार, पाप इन प्रवृत्तियों को कहते हैं- अहंकार, लालच, वासना, ईर्ष्या, लोलुपता या पेटूपन, गुस्सा और आलस। इन्सान के अन्दर का पाप, इन्हीं सात बुरी प्रवृत्तियों के रुप में बाहर दिखाई देता है। इस पाप के कारण ही हमारा संबंध परमेश्वर के साथ और हमारे आस-पास दूसरे लोगों के साथ बिगड़ गया है जिसे हमें ठीक करने की ज़रुरत है।
लेकिन अगर पाप हमारी प्राकृतिक प्रवृत्ति है तो परमेश्वर ने हमें प्रायश्चित करने की ताकत भी दी है जिससे हम वापस परमेश्वर और दूसरे लोगों के क़रीब जा पाएँ।
प्रायश्चित का मतलब है ‘मन फ़िराना’। यानि कि अपने सोच की दिशा को बदलना। अगर हम अपने मन की सोच को बदलेंगे तो हमारी अनुभूति बदलेगी और उसी के अनुसार हमारा व्यवहार भी बदलेगा, क्योंकि पाप हमारी सोच, व्यवहार और अनुभूति में झलकता है। यही प्रायश्चित के तीन प्रकार हैं। अब तक जिस तरह हम सोच रहे थे हमें उसे बदलना होगा।
लेकिन प्रश्न है कि कैसे और किस ओर अपनी सोच को हम बदले? हम अपनी सोच को किस ओर ले जाएँ?
पवित्र शास्त्र बाइबल में परमेश्वर कहते हैं कि हमारी सोच परमेश्वर की सोच से बिल्कुल अलग है। हमें अपनी सोच को परमेश्वर की ओर फ़िराना होगा।
1. अपने मन की सोच को बदलना
2. अपने ग़लतियों और पापों के लिए मन में संताप करना
3. अपने पापों को स्वीकार करना और उनके लिए परमेश्वर से माफ़ी माँगना
4. ग़लत सोच या ग़लत काम न करना
5. परमेश्वर की ओर वापस मुड़ना
” हे परमेश्वर, मैं अपने मन की सोच को बदलना चाहता हूँ क्योंकि ये हमेशा मुझसे पाप करवाते हैं। मुझे दुःख है कि मैंनें पाप किए हैं। मैं अपने पापों को आपके सामने स्वीकार करता हूँ और आपसे माफ़ी माँगता हूँ। मैं इस पाप में दोबारा नहीं गिरुँगा। मैं अपने पापों का प्रायश्चित कर आपके पास आता हूँ। आप मेरी प्रार्थना स्वीकार कीजिए। ये प्रार्थना मैं यीशु मसीह के नाम से माँगता हूँ। “
बाइबिल में यीशु मसीह ने कहा कि उनके नाम से अगर हम प्रार्थना करें तो परमेश्वर हमारी प्रार्थना स्वीकार करेंगे।
1. निरन्तर प्रार्थना करते रहना
2. परमेश्वर के वचन बाइबिल को पढ़ना और उस पर ध्यान लगाना
3. अपने पापों को स्वीकार करना और परमेश्वर से माफ़ी माँगना
4. प्रभु यीशु मसीह और हमारे पापों के लिए क्रूस पर उनके बलिदान को स्वीकार करना और विश्वास करना
5. हमेशा मसीह के विश्वासी लोगों की संगति में रहना
” हे परमेश्वर, मुझे मेरे पापों के लिए माफ़ कीजिए। मैं यीशु मसीह को अपना मुक्तिदाता मानता हूँ। मेरे पापों के लिए वह क्रूस पर कुर्बान हुए, यह मैं स्वीकार करता हूँ। आप मुझे मेरे पापों से बचाइये। आप मुझे किसी भी परिक्षा में मत पड़ने दीजिए। यह प्रार्थना मैं यीशु मसीह के नाम से माँगता हूँ। “
यह मंत्र या प्रार्थना हमें विश्वास के साथ करना होगा क्योंकि परमेश्वर हमारी प्रार्थनाओं को सुनता है।पाप और प्रायश्चित के बारे में और अधिक जानने के लिए आप हमसे संपर्क कर सकते हैं।
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