मैं आपको एक उदाहरण के द्वारा समझाता हूँ। आज हम सब लोग एक technology से चलने वाली दुनिया में जी रहे हैं। हमारे चारों तरफ हम computers और अलग अलग तरह की technology को देखते हैं और रोज़ाना उसका इस्तेमाल भी करते हैं। आप अपने मोबाइल फ़ोन को ही देखिये। उसमे जो आप ऍप्स इस्तेमाल करते हैं उसे उसके डेवलपर ने ऐसे ही randomly या बिना सोचे समझे नहीं बनाया है, बल्कि एक विशेष उद्देश्य या काम को अंजाम देने के लिए बनाया है। फिर आप भी जब कभी उन ऍप्स का इस्तेमाल करते हैं तो इसी विश्वास से करते हैं की इस ऍप का जो भी उद्देश्य है या यूँ कहें की जैसा उसे काम करना चाहिए ये वैसा ही करेगी। पर फिर भी आपने कभी देखा है की वो ऍप कई बार उस तरह से काम नहीं करती है। उसमे error आते हैं और वो ठीक से काम नहीं करती।
और कई बार तो पूरी तरह से रुक या बंद हो जाती है। जिसका कारण हम technical भाषा में “bugs” या “virus” के नाम से जानते है। ये bug या वाइरस सिर्फ इतना करते है की उस ऍप या सॉफ्टवेयर को उसके निर्धारित उद्देश्य से भटका देते हैं और उसे उसके अनुसार काम करने नहीं देते। अब आप इसी उदाहरण को लीजिये और मनुष्य के ऊपर इसे लागू कीजिए। आप को धीमे धीमे पाप की असली पिक्चर साफ़ होने लगेगी।
जिस तरह से ये Bug या वाइरस किसी ऍप या सॉफ्टवेयर को खराब कर देते हैं उसी तरह पाप भी हमें हमारे निर्धारित उद्देश्य से भटका देता है और अंदर ही अंदर हमें ख़राब कर देता है। दुःख की बात तो ये है की कई बार हम पाप और पाप के इन प्रभावों और परिणामों को अपने अंदर देख या समझ नहीं पाते के ये हम पर क्या असर डाल रहा है।