भगवान

भगवान या संस्कृति – आप किसका चुनाव करेंगे? क्या भारतीय संस्कृति भगवान और धर्म से जुड़ी हुई है?

कौन बड़ा है? भगवान या संस्कृति? जानिए अपने जीवन की राह

कई बार शायद हमारे लिए ये फ़ैसला लेना मुश्किल हो जाता है कि क्या ज़्यादा बड़ा है – भगवान या संस्कृति।

भारत में ईश्वर को भगवान कहा जाता है, ये शब्द एक तरह से भारतीय संस्कृति का हिस्सा है। कई बार शायद हमारे लिए ये फ़ैसला लेना मुश्किल हो जाता है कि क्या ज़्यादा बड़ा है – भगवान या संस्कृति।

पहली नज़र में यही लगता है की भगवान ही बड़ा है लेकिन आप गहराई से देखेंगे तो आप पाएँगे कि भारत में अधिकतर लोग किसी एक भगवान पर इसलिए विश्वास करते हैं क्योंकि वे एक विशेष समाज या संस्कृति में रहते हैं।

शब्दकोष में संस्कृति की ये परिभाषा दी गई है –

लोगों के एक विशेष समूह, उनकी भाषा, धर्म, भोजन, सामाजिक परंपरा, संगीत और कला के ज्ञान और विशेषताओं को संस्कृति कहा जाता है।

 

भगवान पर क्यों विश्वास करें?

आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि अधिकतर लोगों को ये नही पता कि वो भगवान पर क्यों विश्वास करते हैं। कई लोग इस बात से निराश होते हैं कि धार्मिक लोग भगवान से कुछ पाना चाहते हैं। वे डरते हैं कि उन्होने अगर विश्वास नहीं किया या कुछ कर्म-कांड, पूजा या यग्य नहीं किया तो उनके साथ कुछ बुरा हो जाएगा। हम डर  की वजह से विश्वास करते है। 

भारतीय सभ्यता और संस्कृति में सालों से चली आ रही कुछ ग़लत धारणायें हैं जिनकी वजह से युवा वर्ग को लगता है कि भगवान बस मनुष्य का बनाया गया एक नियम है और उसका पालन करना उनका फ़र्ज़ हैं। लेकिन अगर आप सचमुच भगवान को खोज रहें हैं तो पाएँगे कि संस्कृति मनुष्य ने बनाई है। लेकिन संसार और मनुष्य की रचना ईश्वर ने की है।

दुनिया में तकरीबन 195 देश हैं और उनकी अपनी भाषायें हैं और अपनी संस्कृति है। जाने अनजाने हमारी संस्कृति में भगवान के बारे में ये धारणा बन गयी है कि भगवान एक ज़रिया हैं उन चीज़ों को पाने का जिन्हे हम अपनी क्षमता से नहीं पा सकते। तो अगर हम ये अच्छा काम कर लें, या भगवान के नाम पर किसी की मदद कर दें, या प्रसाद चढ़ा दें, या कोई यज्ञ कर दें, या मज़ार पर चादर चढ़ा दें तो हमारे मन की मुराद पूरी हो जाएगी।

इस लेन-देन के संबंध को देखकर कई युवा नास्तिकता की ओर झुक रहें हैं।

तो क्या संस्कृति पूरी तरह से ग़लत है?

बिल्कुल नहीं! संस्कृति पूरी तरह ग़लत नहीं है लेकिन क्योंकि वह मनुष्य की बनाई हुई है, इसलिए उसमें खामियाँ है। जैसे भारत में कई समाज बेटी को पैदा होते ही मार देते हैं, बाल विवाह एक ग़लत संस्कृति है, दहेज भी एक ग़लत संस्कृति का हिस्सा है। वास्तव मे मनुष्य की बनाई हुई किसी भी चीज़ में खामी है और संस्कृति भी अपवाद नहीं है।

हमें किसने बनाया? कौन है हमारा भगवान?

तो क्या कोई भगवान है ही नहीं? और संस्कृति ही सबसे बड़ी है? महान भौतिकशास्त्री आल्बर्ट आइंस्टाइन ने एक स्कूली बच्ची के पत्र के जवाब में लिखा था –

जो लोग सचमुच विज्ञान को गंभीरता से पढ़ रहें हैं, ये बात जल्द ही समझ जाते हैं की ब्राह्मांड के क़ानूनों में एक आत्मा (शक्ति) ज़रूर है जो मनुष्य से कहीं अधिक प्रभावी या सक्षम है इसलिए विज्ञान की खोज हमें एक विशेष आध्यात्मिकता की ओर ले जाती है जो किसी अनुभवहीन व्यक्ति की धार्मिकता से काफ़ी अलग है।

दोस्तों वैज्ञानिकों का एक बड़ा वर्ग है जो ये मानता है की ब्रह्मांड का कोई रचयिता है। मैं मानती हूँ कि वो रचयिता एक जीवित परमेश्वर है और उसे हम ईश्वर या भगवान बोलते हैं।

सबसे अच्छी बात तो यह है कि ये ईश्वर किसी भी समूह, देश या संस्कृति में फ़र्क नहीं करता. इसी परमेश्वर ने संसार की हर चीज़ की रचना की है। वो हर संस्कृति से बड़ा है।

बाइबिल में लिखा है –

उसने एक ही मूल से मनुष्यों की सब जातियाँ सारी पृथ्वी पर रहने के लिए बनाईं हैं, और उनके ठहराए हुए समय और निवास की सीमाओं को इसलिए बाँधा है कि वे परमेश्वर को ढूँढें, कदाचित् उसे टटोलकर पायें, तौभी वह (ईश्वर)  हम में से किसी से दूर नहीं। (प्रेरितों के काम 17: 26-27)

दोस्तों इस ईश्वर को और जानिए। वो आपका बनाने वाला है और उसे आपकी जाती या संस्कृति से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। वो आपको अनंत जीवन और क्षमा देना चाहता है। 

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Nirvi

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