इस पूरी बात को समझने के लिए मैं आपको एक कहानी सुनाता हूँ। एक बार एक बहुत ही बड़ा, शक्तिशाली और बुद्धिमान राजा था। वो धर्म और न्याय के साथ राज्य करता था। वो किसी भी गुनहगार को बिना न्याय के ऐसे ही नहीं जाने देता था फिर चाहे वो कोई उसका अपना ही क्यों न हो। उस राजा का एक दूसरा पहलू भी था। वो बहुत ही दयालु, धीरज रखने वाला और बहुत ही प्यार करने वाला राजा था। ऐसा प्यार जैसा की कोई भी न कर सके।
उस राजा के बच्चे भी थे जिन्हे वो बेहद प्यार करता था। उसके राज्य में राजा का एक दुश्मन भी रहता था वो बराबर कोशिश करता रहता था कि कैसा न कैसे वो राजा को हरा दे। जब वो अपनी सारी कोशिशें कर के हार गया तो उसने राजा के बेटे को निशाना बनाया। एक दिन उसने राजा के बेटे को अकेला पा कर उसे राजा के विरोध में भड़का दिया और एक ऐसा काम करने के लिए उसे उकसाया जिसे करने के लिए राजा ने बिल्कुल मना किया था। दुर्भाग्य से वो इसे करने में सफल हो गया और राजा का बेटा पूरे राज्य के सामने एक गुनहगार बन गया और उसकी सजा सिर्फ और सिर्फ मौत थी।
जब उस बेटे को राजा के सामने लाया गया तो राजा का वो दुश्मन भी वहां मौजूद था और वो सारे दरबार में ज़ोर ज़ोर से कहने लगा “आज राजा अपना न्याय दिखायेगा आज वो इस अपराधी को सही सही सज़ा सुनाएगा और हमारे बीच में नया करेगा ” ये देख और सुन कर सारा दरबार हैरान रह गया। लोग ये सोचने लगे की क्या अब राजा अपने प्रिय बेटे को मौत की सज़ा सुनाएगा? राजा ने उन सब के मनों में उठ रहे उन सवालों को जान कर कहा “मेरे दरबार में न्याय ज़रूर होगा और इस अपराध की सज़ा ज़रूर मिलेगी” फिर राजा ने एक योजना बनाई और उनसे कहा “ये सच है की मेरे बेटे ने एक बहुत ही बड़ा गुनाह किया है जिसकी सजा मृत्यु है और वो सजा ज़रूर मिलेगी” तब वो अपने सिंघासन पर से उठ कर नीचे आया और अपने बेटे का स्थान ले लिए और कहा “जो भी सज़ा मेरे बेटे को मिलनी चाहिए उसे उसके स्थान पर मैं ले लेता हूँ। मुझे उसकी सज़ा दे दो और उसके बदले मेरी आज़ादी उसे दे दो।
उस दिन उस दरबार में दो चीज़ों की जीत हुई। पहली प्रेम की, क्योंकि ये प्रेम ही था जिसने गुनहगार बेटे को बचा लिया। और दूसरा न्याय क्योंकि न्याय के अनुसार गुनाह की सज़ा मिलनी चाहिए थी जो राजा ने अपने ऊपर ले ली। पर कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती। क्योंकि उस राजा के जैसा दयालु, प्रेमी, सच्चा और शक्तिशाली और कोई नहीं था, इसलिए मृत्यु भी उस से हार गई। तीसरे दिन वो राजा मृत्यु को हरा कर मुर्दों में से ज़िंदा हो गया। और उस दिन उसने अपने उस शत्रु को हरा दिया।
हम क्या सीख ले इससे?