मैं कौन हूँ? इस सवाल को तीन दृष्टिकोण से देखें:
- इंसान के संबंध में, मैं कौन हूँ?
- अपने अंत मन या प्राण के संबंध में, मैं कौन हूँ?
- ईश्वर के संबंध में, मैं कौन हूँ?
1. इंसान के संबंध में, मेरा अस्तित्व क्या है?
हमारे उदाहरण में ‘आरव’ कि इस दुनिया में एक पहचान है। पर जब उसको जानने वाले लोग भी जीवित नहीं रहेंगे तो आरव धीरे धीरे भुला दिया जाएगा। 3 महीने के बाद तो बैंक भी आपसे KYC के डाक्यूमेंट्स मांगती है, कि आप अपने आपको साबित करें। बाकी इंसानों की तरह आप भी एक इंसान हो, कोई जानवर तो नहीं!
2. अपने अंत मन या प्राण के संबंध में, मेरा अस्तित्व क्या है?
अपने अंतर्मन में आप कुछ हद तक अपने आप को पहचानते हो। जैसे कि आपकी सवइच्छा, जैसे कि आपके विचार या फिर आपका अपना नजरिया। यहां पर आप ‘आरव’ हो, कोई और आप जैसा नहीं है। आप अपने आप में एक अनोखे व्यक्ति हो।
3. ईश्वर के संबंध में, “मेरा अस्तित्व क्या है?”
बाइबिल की दृष्टि से आप एक शानदार और अद्भुत तरीके से सृजी गई सृष्टि हो जिसके लिए जीवन में एक निश्चित और महान उद्देश्य है। मैं समझती हूँ जो संस्कृति परमेश्वर को पहचानने में असफल रही, उसने मनुष्य के साथ अमानवीय या दुर्व्यवहार किया क्योंकि वहां परमेश्वर का भय नहीं था।
बाइबिल आपको आपके जन्म से लेकर मरने और उसके बाद के जीवन के महत्व के बारे में भी बताती है। हम उस स्त्रोत पर वापस जाएं जहां से जीवन के उद्देश्य का जवाब मिले और अपने अस्तित्व की पहचान हो। मान लीजिए आप इंग्लैंड की रानी के महल के द्वार पर खड़े हो, आप अंदर जाना चाहते हो। गार्ड आपसे सवाल करता है “आप कौन हैं? आपके पास अंदर जाने का क्या अधिकार है?” हम में से बहुत से लोग द्वार पर ही खड़े रह जाएंगे। लेकिन अगर आप उनके पोते प्रिंस विलियम्स के साथ अंदर जाएं तो गॉड आपको नहीं पूछेगा कि आप कौन हैं।
इस तरह यीशु मसीह जो परमेश्वर है, राजा है, आपका सृष्टिकर्ता है, आप को नई पहचान दे सकता है। जब आप अपने पापों की क्षमा मांगते हैं और यह विश्वास करते है की यीशु, आप के पापों के लिए बलिदान हुआ, तो आप उसके बच्चे बन जाते हैं। आपके अस्तित्व को एक परिवर्तन या बदलाव से गुजरना है जहां आप आराव से परमेश्वर के बेटे बनकर स्वर्ग में प्रस्थान करोगे।