“दोस्ती का रिश्ता वह होता है जो दो अनजान लोगों को जोड़ देता है, जिंदगी कुछ भी हो पर रास्तों को मोड़ देता है, जब अपनी परछाई भी साथ छोड़ दे फिर भी साथ सिर्फ सच्चा दोस्त देता है।”
यह यारों की दोस्ती है ही ऐसी। हम सोचना भी नहीं चाहते कि दोस्त के बिना जिंदगी कैसी बेजान होगी।
खुशी में दोस्त, गम में दोस्त, मुसीबत में दोस्त, जरूरत में दोस्त, शॉपिंग के लिए दोस्त, चाय के लिए दोस्त और कौन सी जगह दोस्त नहीं।
नई मंजिल इस बार एक और दोस्ती की कहानी लेकर आया है जिसका नाम है दाऊद और योनातान। एक ऐसा दोस्त जिसे हभ सब अपने जीवन मे चाहते है। पूरी दुनिया में आज इनकी दोस्ती की मिसाले दी जाती है।
दाऊद एक चरवाहा था जो अपने सब भाइयों में छोटा था और अपने पिता की भेड़ बकरियों की देखभाल करता था, वहां दूसरी तरफ योनातन इसराइल के राजा शाऊल का बेटा था। महल में रहना, ऐशो आराम, राजपाठ, नौकर चाकर यह सब योनातान के लिए हर दिन की बात थी।
दाऊद और योनातान की मुलाकात इस तरह से हुई कि एक बार योनातान के पिता राजा शाऊल की जंग चल रही थी कि विरोधी सेना से एक दानव राजा शाऊल को ललकार रहा था और उसे लड़ने के लिए राजा शाऊल के पास कोई वीर नहीं था जो उस दानव को मार गिराए और उस देश को जीत ले।
जब दाऊद ने यह बात सुनी तो वह राजा शाऊल के लिए उस दानव का सर काट कर लाया और इजराइल को जय दिलाई। दाऊद से खुश होकर राजा ने उसे अपनी सेना में एक अच्छी जगह दे दी और उसे अपने महल में रख लिया। फिर दाऊद की मुलाकात योनातन से हुई और उनकी दोस्ती इतनी गहरी होती चली गई कि योनातान उसे अपने प्राण के समान प्यार करता था।
क्योंकि योनातान दाऊद को अपने भाई के समान प्रेम करने लगा था इसलिए उसने दाऊद को अपना शाही बागा जो वो खुद पहनता था उतारकर दाऊद को दिया अपनी तलवार, धनुष, कटिबंध भी उसको दिए क्योंकि योनातान को दाऊद में एक अच्छा दोस्त मिल गया था और उसका मन उससे लगा रहता था।
कुछ समय के बाद ऐसा हुआ कि जब दाऊद का यश पूरे देश में फैल गया और उसकी सारी प्रजा उससे प्रेम करने लगी तो राजा शाऊल दाऊद से डर गया क्योंकि ईश्वर का हाथ दाऊद पर था। इस कारण राजा शाऊल दाऊद से जलने लगा लगा और उसे मरवाने का षड्यंत्र रचने लगा। जब योनातान को यह सब पता लगा तो उसने दाऊद को यह सारा भेद बता दिया और दाऊद को यह भरोसा दिलाया कि वह इस बारे में अपने पिता को मनाएगा कि वह दाऊद को न मारे। जब योनातान को यह एहसास हुआ कि उसका पिता नहीं मानेगा तो उसने बड़ी चतुराई से दाऊद को राजा की नज़रों से दूर भेज दिया और उसकी जान बचा ली।
वह दोनों हमेशा के लिए दूसरे से अलग हो रहे थे इसलिए वह आखरी बार मिले और बहुत रोए और एक दूसरे के लिए प्रार्थना की कि चाहे कुछ भी हो उन दोनों की दोस्ती हमेशा के लिए बनी रहे और यह दोस्ती उनके बच्चों में भी बनी रहे।
और यह वादा कर एक दूसरे से अलग हुए और उसके बाद दोबारा कभी नहीं मिले।
यह थी दोस्ती दाऊद और योनातान की। आज उनकी दोस्ती की मिसाल पूरी दुनिया में अमर है। आपके लिए नई मंजिल की ईश्वर से यही प्रार्थना है कि आपको भी दाऊद और योनातान जैसे दोस्त मिले जो आपको बनाए और आपकी हर परिस्थिति में आपका साथ दें। नई मंज़िल के साथ जुड़ें रहें ऐसी और बहुत सी दोस्ती की कहानियाँ पढ़ने के लिए।
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