मेरी अस्तित्व और पहचान क्या है?

अस्तित्व की परिभाषा 

एक समय था जब इस सवाल से मैं भी जूझ रहा था कि आख़िर क्या है मेरी पहचान ? क्या है मेरा अस्तित्व? कौन हूँ मैं ?

मेरे कॉलेज या ऑफ़िस के आई. कार्ड (पहचान पत्र) के अनुसार मैं एक स्टुडेंट या ऑफिसर हूँ। मेरे वोटर आई. कार्ड (मतदाता पहचान पत्र) के अनुसार मैं भारत का एक नागरिक हूँ। अपने घर-परिवार में मैं किसी का बेटा/बेटी, भाई/बहन या अपने दोस्तों के बीच उनका दोस्त हूँ।

इन सब बातों से यह बात साफ़ है कि मेरी पहचान अलग-अलग जगह पर अलग-अलग है। मेरी पहचान मेरे काम या मेरे आस-पास के माहौल के मुताबिक अलग-अलग है। लेकिन क्या हो अगर मैं अनाथ हूँ? मेरा कोई घर-परिवार नहीं, न ही मैं कहीं पढ़ाई या नौकरी कर रहा या मेरे पास कोई आई. कार्ड (पहचान पत्र) नहीं ! तो क्या मेरी कोई पहचान नहीं?

अपनी पहचान को कई लोग कई तरह से देखते हैं।

हमारी असली पहचान दरअसल जीवन में हमारे उद्देश्य से जुड़ा है। वह क्या है, आइए इस बात को समझें।

मान लीजिए मेरे पास एक फ़ोन है। उस फ़ोन को मैं कॉल करने, मैसेज करने, व्हाट्सप, फ़ेसबुक करने, गाने सुनने या वीडियो देखने के लिए इस्तेमाल कर सकता हूँ।  उस फ़ोन की पहचान उस कंपनी का नाम है, जिसने उसे मैनुफ़ैक्चर किया या बनाया है। उस फ़ोन का उद्देश्य लोगों को कॉल करना है। उस कंपनी ने उस फ़ोन को मूल रुप से लोगों को कॉल करने के लिए ही बनाया है। वह भले ही मैसेज भेज पाए पर वह पेजर नहीं, भले ही गाना सुना पाए पर वह एम.पी.3 प्लेयर नहीं…

ठीक उसी तरह हमारी पहचान और हमारे जीवन का उद्देश्य सिर्फ़ परमेश्वर ही बता सकते हैं, जिन्होंनें हमें बनाया है। यह हमें बाइबल में मिलती है जो कि परमेश्वर का वचन है। हम परमेश्वर, उनके अस्तित्व और बाइबल के बारे में आगे बात करेंगे।

आख़िर अस्तित्व क्या है? क्या है इसकी परिभाषा?

अस्तित्व किसी भी चीज़ के होने का भाव है। किसी भी चीज़, व्यक्ति या स्थान के होने के वजूद या सबूत से हमें उसके अस्तित्व का पता चलता है।

तो क्या ईश्वर का अस्तित्व क्या है?

मान लीजिए कि आपको रास्ते में चलते-चलते कोई पेंटिंग (चित्रकारी) मिली। सबसे पहली चीज़ जो हमारे दिमाग में आयेगी वो ये है कि इस पेंटिंग को किसने बनाया? क्योंकि अगर कोई पेंटिंग है तो उसका पेंटर भी होगा! इसलिए हाँ बिल्कुल है…बाइबिल कहती है कि ईश्वर का अस्तित्व है, उसी ने इस पूरी दुनिया और इसमें रहने वाले हर प्राणी को तथा इसके बाहर पूरे ब्रहाण्ड को बनाया। उसी ने हमें जीवन दिया, हमारी पहचान दी है कि हम उसके सन्तान हैं और हमें हमारे जीवन का उद्देश्य दिया और वह यह है कि हम उसे जान पाए। उसने अपने पुत्र यीशु मसीह को हमारे लिए भेजा कि हम उनके द्वारा परमेश्वर को पा सकें।

क्या वैग्यान भगवान को या ईश्वर के अस्तित्व को मानते हैं?

आज इक्कीसवीं सदी के पोस्ट-मॉर्डन ज़माने में अक्सर लोग ये समझते हैं कि वैग्यानिक, ईश्वर को नहीं मानते और विज्ञान तथा ईश्वर का कोई संपर्क नहीं है। आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि महान वैग्यानिक  आइज़ेक न्यूटन, जिन्होंने दुनिया को ‘3 लॉज़ ऑफ़ मोशन’ दिया, वो परमेश्वर पर विश्वास करते थे। एलबर्ट आइंस्टाइन, बीसवीं सदी के महानतम वैग्यानिक ने कहा था, “मैं आश्वस्त हूँ कि ईश्वर जुआ नहीं खेलते”। इस बात से वो यह कहना चाह रहे थे कि ईश्वर का अस्तित्व है और दुनिया में सब कुछ वह अपनी परिकल्पना के अनुसार करते हैं। वैग्यानिक ब्लेज़ पास्कल, जिनके नाम पर ‘प्रेशर’ यानि ‘दबाव’ का एस. आई. यूनिट ‘पास्कल’ पड़ा, उन्होंनें तो यहाँ तक कहा कि हर इन्सान के दिल में एक ख़ाली जगह है जिसे परमेश्वर के प्यार के रुप में सिर्फ़ यीशु मसीह ही भर सकता है।

तो क्या है ईश्वर का सत्य और अस्तित्व?

हाँ…और ये बात उतनी ही सामान्य है जितनी कि प्रकाश या लाईट, जो ख़ुद तो हमें दिखाई नहीं देता पर   जिसकी वजह से हम दुनिया कि सारी चीज़ें देख पाते हैं।

हमें इस बात को जानने कि ज़रुरत है कि हमारी पहचान और हमारा अस्तित्व, परमेश्वर के साथ जुड़ा है। परमेश्वर के बिना हमारी पहचान अधूरी और हमारे अस्तित्व का कोई उद्देश्य न होगा।

अगर आपके मन में पहचान, अस्तित्व और ईश्वर के बारे में कोई प्रश्न या शंका है तो आप हमसे संपर्क कर सकते हैं।


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Nirvi

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